सामाजिक अध्ययन पाठ्यक्रम के उपागम approaches to social studies curriculum,

 


(1) सह-संबंध उपागम [सहसंबंध दृष्टिकोण]

(2) समन्वय उपागम [एकीकरण दृष्टिकोण]
(3) केन्द्रित उपागम [संघात्मक दृष्टिकोण]
(4) चक्राकार उपागम [सर्पिल दृष्टिकोण]
(5) इकाई उपागम [इकाई दृष्टिकोण]
(6) काल-क्रम उपागम [कालक्रम दृष्टिकोण]

सामाजिक विज्ञान या सामाजिक अध्ययन का पाठ्यक्रम एक बहु सामाजिक विषयों का संगठित रूप माना जाता है। इस प्रकार पाठ्यक्रम के संगठित क्षेत्र से संबंधित विभिन्न उपागमों का सामाजिक अध्ययन पाठ्य-सामग्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इनका वर्णन इस प्रकार है

(1) सह-सम्बन्ध उपागम

सामाजिक अध्ययन के प्राथमिक सामाजिक विषय के रूप में अर्थशास्त्र, नागरिक शास्त्र, भूगोल, इतिहास, समाजशास्त्र आदि को एक दूसरे से संबंधित पाठ्यक्रम को संगठित रूप में प्रस्तुत किया जाता है। सह-सम्बन्ध से प्रमाण-सह-संबंध से विषय के परस्पर समान आधारों पर संबंध से माना जाता है। हर्बर्ट द्वारा सर्वप्रथम स्कूल के पाठ्य विषयों में सह-संबंध स्थापित करने के लिए सलाह दी गई। हर्बर्ट का कथन था कि पाठ्यक्रम में विषयों को इस प्रकार नईता दी जानी चाहिए, जिससे एक विषय के शिक्षण में दूसरे विषय का ज्ञान सहायक हो सके। इसका आधार उनका 'पूर्वानुवर्ती ज्ञान सिद्धांत' था। इस सिद्धांत के अनुसार पूर्व विचार से नए विचार का संबंध है। ड्यूवी ने इस प्रकार की मेलजोल को दूसरे के नाम से पुकारा जाता है।

(2) समन्वय उपागम

एकीकृत समन्वयित उपगम का ढाँचा पाठ्य-कविता के विभिन्न अंशों का समग्र रूप में एकत्रित होने या निकट आने की प्रक्रिया है। शिक्षा के एकरूप रूप में इस प्रकार के परिवर्तन होते जायें कि यह व्यक्ति के क्षेत्र में सामाजिक जीवन की आकांक्षाएं और आकांक्षाओं के अनुरूप हो सकता है और सामाजिक आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक परिवर्तन में प्रभाव के रूप में बन सकता है। यह एक अमेरिकी प्रत्यय है। सर्वप्रथम हमारे देश में कोठारी आयोग (1966) ने इसे सीधे की ओर संकेत किया। आयोग ने अपव्यय व अवरोध की समस्या को दूर करने के लिए इस उपागम का प्रयोग करने पर बल दिया।

इसमें निम्नलिखित बातों पर जोर दिया गया:-
a. शिक्षा में ज्ञान केवल पुस्तकों तक सीमित है। इसलिए बच्चों को स्वयं के अनुभव के आधार पर सीखने के लिए स्वतन्त्र रूप से प्रेरित करना चाहिए।
बी। ज्ञान की परीक्षा में केवल विषयों की ही शिक्षा न देकर व्यावहारिक पक्ष पर बल देना।
सी। छात्रों की रुचि और अनुभव के आधार पर सीखने के लिए आगे बढ़ना

(3) केन्द्रित उपागम

इस उपागम में सामाजिक विज्ञान को केंद्रीकृत करके विभिन्न विषयों, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, नागरिक शास्त्र और समाजशास्त्र का एक केंद्र तथा उसके विभिन्न विज्ञान पाठ्यक्रमों की रचना की जाती है ताकि विषयों का ज्ञान प्रासंगिक एवं प्रभावशाली रूप में सभी छात्रों को प्रदान किया जा सके ।

केन्द्रित उपागम की विशेषताएं

(a) यह उपगम पाठ्य-कविता के भ्रमित रूप में बल देता है।
(बी) छात्रों को सरल से कठिन सामग्री का अध्ययन प्रदान किया जाता है। इससे प्रत्येक बिंदु को साथ-साथ सीखता है।
(c) यह उपागम पूर्णतः मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है, क्योंकि इसमें छात्रों की रुचि एवं अभिरुचियों पर विशेष बल दिया जाता है।
(घ) केन्द्रित उपागम द्वारा पाठ्य-कविता को प्रभावशाली, सार्थक, सुलभ एवं सादृश्य के रूप में प्रस्तुत करने पर बल दिया जाता है।

(4) चक्राकार उपागम

चक्राकार उपगम में पाठ्य-कविता की प्रत्येक इकाई एक चक्राकार रूप से संबंधित होती है। यह एक दूसरे से परस्पर समन्वित कार्यों पर आधारित है। ये सामाजिक चित्र का चक्र पूर्णरूप से भ्रमित होता है जिसके द्वारा प्रत्येक इकाई एवं अधीर दो रूपों में कार्य करता है। इसे ही चक्राकार उपागम के नाम से पुकारा जाता है। सामाजिक विश्लेषण पाठ्यक्रम का मुख्य आधार सामाजिक चरित्र एवं सामाजिक नियम व मूल्य का विकास होता है। मानव जाति, संबंध, सिद्धांत और सामाजिक जीवन के साथ ही चेतना और जागरूकता का लक्ष्य है। समान सामाजिक भावना द्वारा महत्व, मूल्य तथा मनोभावों को प्राप्त करने में चक्राकार उपागम डाउनलोड के रूप में कार्य करता है।

चक्राकार उपागम की विशेषताएं

> ज्ञान की प्रत्येक कड़ी एक-दूसरे से परस्पर संबद्ध होती है। इससे शिक्षण में व्यावहारिकता और प्रासंगिकता पर बल दिया जाता है।
> प्रत्येक शिक्षण की इकाई चक्राकार रूप में कार्य करती है। इससे उनका महत्व अधिक बढ़ जाता है।
> यह उपसमूह सामाजिक अध्ययन पाठ्यक्रम का सामान्य अंग माना जाता है। > इसके द्वारा छात्र सरलता एवं अपनीता से प्रत्येक वस्तु को उजागर करता है।
> इस उपागम में शिक्षण को प्रभावशाली तथा सार्थक बनाने में विशेष बल दिया जाता है।

(5) इकाई उपागम

इकाई 'इकाई' शब्द की उत्पत्ति नई है परन्तु इसमें निहित धारणा नई नहीं है शिक्षा के क्षेत्र में सामान्य रूप से इसका प्रयोग 1920 ई. से हुआ। इसे पहले विषय-कविता के क्षेत्र के संगठन का ढांचा माना गया लेकिन बाद में इसे एक शिक्षण विधि के रूप में ग्रहण किया गया। मॉरिसन ने कहा है, “इकाई वातावरण, संगठन विज्ञान, कला या आचरण का एक व्यापक एवं महत्वपूर्ण अंग होता है, जो सीखने के समान व्यक्तित्व में सामंजस्य आ जाता है।” राष्ट्रीय शैक्षिक अनुशासन एवं प्रशिक्षण परिषद-“इकाई एक निर्देशात्मक मुक्ति है जो छात्रों को समवेत रूप में ज्ञान प्रदान करती है।”

(6) कालक्रम उपागम

ऐतिहासिक घटनाओं की समय, स्थान की झलक और संदर्भ को हम काली धारा कहते हैं। "कालक्रम उपागम निर्णय जीवन व चित्रों को समझने की क्षमता है, उनमें से कुछ संबंध स्थापित होते हैं, घटती है। कालक्रम का ज्ञान देना सामाजिक अध्ययन शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य माना जाता है। इससे संबंधित घटनाएं और वर्तमान में घटनाएं होती रहती हैं। कालक्रम कमीशन महान पुरुष, घटनाओं और आंदोलन, युद्धों को समझने और उनके प्राचीनता के अनुभव में सहायक होता है।

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